
दोस्तो नमस्कार स्वागत है आपका एक्सप्रैस इंडिया न्यूज पर। दोस्तो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत किसान अपनी ही ज़मीन पर बिना कोई पैसा खर्च किए खेती करता है। इस तरह की खेती में कॉन्ट्रैक्टर खाद से लेकर बीज, सिंचाई और मजदूरी का सारा खर्च उठाता है और एक तय दाम पर फसल को खरीदता है। जो भी कंपनी या आदमी किसान के साथ अनुबंध करता है उसे कॉन्ट्रैक्टर कहते हैं। मतलब बिना कुछ किए किसान अपनी ही जमीन पर खेती करवाता है और पूर्व निर्धारित कीमत पर बेचता है।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग विकसित देशों में बहुत ही प्रचलित है दोस्तो अब आपको कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से होने वाले फायदों के बारे में बताते हैं और अंत में बताएंगे कि किसान इस बिल का विरोध क्यों कर रहे हैं :
1- किसानों को खेती के बेहतर रेट मिलते हैं।
2- बाजार में होने वाले रेट के उतार-चढ़ाव का किसान पर कोई असर नहीं होता है।
3- किसानों को खेती करने के पुराने तरीकों में सुधार और नए तरीकों को सीखने का अवसर मिलता है।
4- किसानों को खेती में प्रयोग होने वाले बीज, फर्टिलाइजर आदि को चुनने में मदद मिलती है।
5- इस तरह से की जाने वाली खेती के कारण फसलों की क्वॉलिटी और मात्रा दोनों में सुधार देखने को मिलता है।

किसान भाई इस बिल का विरोध क्यों कर रहें हैं :
किसानों का मानना है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से उनका पक्ष कमज़ोर होगा और वे उपज की कीमतें निर्धारित नहीं कर पाएंगे हो सकता है निकट भविष्य में फसल की कीमतों में चढ़ाव आ जाये तो किसानो अपनी मनमानी नही कर पाएंगे।
छोटे किसानों को डर है कि वो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग नहीं कर पाएंगे, क्योंकि प्रायोजकों की पूर्ण रुप से परहेज करने की संभावना है।
किसानों का मानना है कि नए कानून के तहत उन्हें अधिक परेशानी होगी। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
किसानों को लगता है कि यदि कोई भी विवाद उत्पन्न होता है तो इसके निपटारे में बड़ी कंपनियों को लाभ मिलेगा।
निष्कर्ष देखे तो फसल से संबंधित अगर कोई भी वाद विवाद होता है तो उसका निपटारा सिर्फ डीएम कार्यालय द्वारा ही किया जा सकेगा उसके लिए किसान उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय नही जा पाएगा। और हो सकता है तो निकट भविष्य में फ़सल की कीमतो के बढ़ने से किसान को फायदा न पहुँच पाए उसका फायदा सिर्फ कॉन्ट्रैक्टर को ही मिलेगा।
दोस्तो इसके बाद भी अगर आपकी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित कोई प्रश्न है तो आप हमें कमेंट कर सकते हैं।