
पिछले वर्ष यू.पी. मे एंटी लव जिहाद कानून 2020 प्रभावी हुआ, जिसके बाद कुछ अन्य राज्यों मध्य प्रदेश, उत्तराखंड में भी ये कानून पारित हो गया. हालाँकि कई सामाजिक संगठनों ने इस क़ानून को असंवैधानिक और अधार्मिक एकता पर खतरा बताया है. यू.पी. में इस कानून के तहत किसी हिन्दू महिला और मुस्लिम पुरुष के बीच प्रेम के रिश्ते को लव जिहाद नाम दिया गया है.
लव जिहाद का मतलब किसी हिन्दू महिला का धर्म परिवर्तन करके उससे शादी करना. हालाँकि इस क़ानून के मुताबिक आरोपी के द्वारा किसी के साथ धोखे से, अपनी असली पहचान छिपाकर या किसी गलत मकसद से लालच देकर धर्म बदलवाने पर 10 साल की सजा का प्रावधान है. परंतु इस क़ानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट की जानी मानी वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर का कहना काफी अलग है, दिल्ली अमन नेटवर्क संगठन के साथ हुए ऑनलाइन सेशन में उन्होंने कहा कि आईपीसी की धारा 493 में पहले से ही विवाह के लिए किसी भी प्रकार का दबाब, लालच, धोखा देने पर 10 साल की सजा का प्रावधान है, ऐसे में सरकार द्वारा एंटी लव जिहाद क़ानून का लाया जाना महिलाओं की स्वतंत्रता, अपने जीवन साथी को चुनने का अधिकार और शादी जैसे निजी फैसले को लेने पर हमला है.
सरकार इस क़ानून की आड़ में समाज में इस मुद्दे को सांप्रदायिक और राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रही है, जिसमें मुख्यता मुस्लिम वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है, साथ ही महिलाओं के अधिकारों पर भी कंट्रोल करने की कोशिश हो रही है. ये क़ानून पूरी तरह से संविधान की धारा (आर्टिकल 14, 15, 21, 25) को बाधित (Interrupt )करता है जिसमें समानता, धार्मिक स्वतंत्रता जैसे अधिकार शामिल है. ये क़ानून पितृसत्ता का रूप है जो जाति, धर्म के साथ महिलाओं के अपने निजी जीवन को भी बुरी तरह से प्रभावित करता है. समाज में पहले से ही धार्मिक और सामाजिक रूप से महिलाओं की आजादी पर पाबंदी है ऐसे में इस तरह के क़ानून का लाया जाना कई तरह के सवाल खड़े करता है.