
मुंबई में बॉलीवुड की जिंदगी को दर्शाती कई सारी फिल्में बनी है। यह फिल्में हमें एक कलाकार की स्ट्रगल और उसकी जिंदगी के अन्य पहलुओं से परिचित करवाती हैं। राइटर स्क्रीन्राइटर राजकुमार सिंह जी ने इस पर किताब लिखने का बीड़ा उठाया है। किताब का नाम है “सुपरस्टार की मौत”।
किताब के सार को अगर हम समझने की कोशिश करें तो हमें यह समझ में आता है कि किताब मुंबई में रहने वाले बहुत से अलग-अलग तरह के लोगों की कहानी है। यह उन लोगों की कहानी है जो डॉक्टर और इंजीनियर के सपने को त्यागकर फिल्म राइटर या एक्टर बनना चाहते हैं। यह उन लोगों की कहानी है जो सुपर स्टार बन चुके हैं लेकिन कुछ समय बाद जब उनका करियर ग्राफ नीचे आने लगता है तब वह परेशान हो जाते हैं और ड्रग्स का सहारा लेने लगते हैं। यह उन लोगों की भी कहानी है जो की कहानियों के दम पर कम बजट की फिल्मों के साथ भी तहलका रच देते हैं। यह उन लोगों की भी कहानी है जिनके प्रतिभाशाली होने के बावजूद फिल्म इंडस्ट्री एक समय के बाद उनको नकार देती है।
यह किताब फिल्म इंडस्ट्री के अनेक पहलुओं से परिचित करवाती है। यह किताब बताती है कि किस तरह लेखक को उनके हक और उनके पैसे के लिए तड़पाया जाता है। यह किताब यह भी बताती है कि किस तरह मुंबई चलती रहती है। चाहे किसी के साथ कोई भी अनहोनी ही क्यों न हो रही हो। यह शहर जिसको जितना देता है उससे उतना छीन भी लेता है।
एक मार्मिक और थोड़ा सा दुखी करती कहानी को अगर आप पढ़ना चाहते हैं तो यह किताब पढ़ी जा सकती है। मुझे बहुत बार ऐसे लगा कि कुछ पात्र रियल लाइफ जिंदगी से प्रेरित है। जैसे कि के गोमा का किरदार,जोकि कम बजट की कहानियों और नए कलाकारों के साथ फिल्म बनाने का साहस रखता है, अनुराग कश्यप से प्रेरित लगता है। नशे का सहारा ले रहे सुपरस्टार का किरदार एक ऐसे स्टार से मिलता-जुलता लगता है जो बॉलीवुड में हर तरह के किरदार निभा चुका है और इस समय जब अपनी उम्र के 50वे पड़ाव में पहुंच चुका है तो उसका आकर्षण जो कभी सर चढ़कर बोलता था आज बॉक्स ऑफिस पर फीका पड़ गया है।
किताब का कवर पेज बहुत आकर्षक है। उससे भी ज्यादा आकर्षक है किताब के कवर पेज पर लिखी बड़ी जबरदस्त पंच लाइन,”इस कहानी के सभी पात्र असली हैं। उतने ही असली, जितना रामगढ़ में गब्बर सिंह था, मुंबई में भीखू म्हात्रे और फतेहपुर में असलम पंचरवाला”।